class 12 history chapter 1 notes in hindi

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इतिहास हमारे जीवन में बहुत सार्थक विचार और आदर्श की भावना जागृत करता है, इसलिए हमे अपने बच्चे को इतिहास के बारे में अवश्यक जानकारी देनी चाहिए, इसी क्रम में आज हम लेकर आये है, इतिहास से सम्बन्धित कक्षा 12 के कुछ टाॅपिक, तो चलिए शुरूआत करते है, आज के टाॅपिका की कृपया ध्यानपूर्वक पढिए, जिससे आपको इतिहास की अच्छी जानकारी हो सकें।

हड़प्पा सभ्यता । ईंटे, मनके और अस्थियाँ ।

Class 12 History Chapter 1 Notes In Hindi

हड़प्पा सभ्यता –

पुरातत्वविद ‘संस्कृति’ शब्द का प्रयोग पुरावस्तुओं के ऐसे समूह के लिए करते हैं जो की एक विशिष्ट शैली के होते हैं तथा सामान्यतया एक साथ, एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र तथा काल-खंड से संबद्ध पाए जाते हैं। आज से लगभग 5000 वर्ष पहले सिंधु नदी के तट पर स्थित सिंधु घाटी सभ्यता विश्व की प्रारंभिक चार सभ्यताओं में से एक थी। यह एक नगरीय सभ्यता थी। पुरातत्व के द्वारा सर्वप्रथम हड़प्पा नगर की खोज की गई थी। इसीलिए इसे हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है।

हड़प्पा सभ्यता की खोज कब और कैसे हुई –

लगभग 160 साल पहले पंजाब ( वर्तमान पाकिस्तान ) में पहली बार रेलवे लाइनें बिछाई जा रही थी और कुछ स्थान पर खुदाई का कार्य चल रहा था । उत्खनन कार्य के दौरान कुछ इंजीनियरों को अचानक हड़प्पा पुरास्थल मिला । यह स्थान आधुनिक समय में पाकिस्तान में है । उन कर्मचारियों ने इसे खंडहर समझ लिया और यहां की हजारों ईंट उखाड़ कर यहां से ले गए और ईंटों का इस्तेमाल रेलवे लाइन बिछाने में किया गया लेकिन वह यह नहीं जान सके की यहां पर कोई सभ्यता थी ।
1921 में दयाराम साहनी ने हड़प्पा नामक स्थल की खुदाई करवाई और हड़प्पा की मुहरें खोज ली। 1922 में रखाल दास बनर्जी ने मोहनजोदड़ो नामक स्थान पर उत्खनन कार्य किया और इन्होंने ने भी वैसी ही मुहरे खोज ली जैसी हड़प्पा में मिली थी । इसके बाद यह अनुमान लगाया गया की यह दोनों क्षेत्र एक ही संस्कृति के भाग है । इसके बाद सन् 1924 में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल सर जॉन मार्शल ने पूरे विश्व के सामने एक नई सभ्यता की खोज की घोषणा की ।

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12 Class History Notes In Hindi Chapter

हड़प्पा सभ्यता में मिले नगर व उनमें मिली हुयी वस्तुएँ –

मोहनजोदड़ो –

मोहनजोदड़ो का सिंधी भाषा में शाब्दिक अर्थ होता है- ‘मृतकों का टीला’। इसे सिंध का बाग भी कहा जाता है मोहनजोदड़ो के आस-पास की भूमि बहुत ही उपजाऊ थी। मोहनजोदड़ो में अनेक वस्तुएं मिली हैं जैसे -1398 मुहरें, पुजारी का सिर? मोम के सांचे? कांस्य की नर्तकी, सभागार, सीप का पैमान, सूती कपड़े के अवशेष, पानी का जहाज, हाथी का कपाल, गाड़ी के पहिए, शिलाजीत, मेसोपोटामिया की मोहरे, दाढ़ी वाले मनुष्य की प्रतिमा, हाथी दांत की तराजू, पशुपति की मुद्रा इतियादी वस्तुएं प्राप्त हुई है।

धौलावीरा-

धौलावीरा वर्तमान समय में गुजरात के कच्छ जिले की भचाऊ तहसील में स्थित है। यह सिंधु घाटी सभ्यता कालीन स्थल मानहर व मानसर नदियों के पास स्थित है। धौलावीरा में हमें बाँध अथवा कृत्रिम जलाशय के साक्ष्य मिले हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि उस नगर में जल प्रबंधन की उचित व्यवस्था मौजूद थी।

लोथल-

वर्तमान समय में लोथल गुजरात के अहमदाबाद में भोगवा नदी के तट पर स्थित है। यह स्थल खंभात की खाड़ी के अत्यंत निकट पर स्थित है। उस स्थल की खोज 1957 ईस्वी में श्री एस0 आर0 राव द्वारा की गई थी। यहां से फारस की मोहरें, धान व बाजरे की खेती के प्रमाण, आटा पीसने वाली चक्की, हाथी दांत का पैमाना, तीन युगल सावधान, कुत्ते की मूर्ति के प्रमाण मिले हैं।

चन्हूदड़ो-

चन्हूदड़ो वर्तमान में पाकिस्तान में सिंधु नदी के तट पर स्थित है। यह मोहनजोदड़ो से 128 किलोमीटर दूर स्थित है। यहाँ पर उत्खनन कार्य 1935 ईस्वी में अर्नेस्ट मैके के नेतृत्व में किया गया था। यहाँ पर शहरीकरण का अभाव था। इस स्थल से विभिन्न प्रकार के मनके, उपकरण, मुहरें इत्यादि प्राप्त हुई हैं। चन्हूदड़ों से मनके बनाने का कारखाना, अलंकृत हाथी, शवानए पीतल की बत्तख, लिपिस्टिक, तराजू एवं बैलगाड़ी इत्यादि मिले हैं ।

12th History Chapter 1 Notes In Hindi (Part 1)

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कालीबंगा-

कालीबंगा स्थल वर्तमान राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में स्थित है। यह प्राचीन ’सरस्वती नदी’ के तट पर स्थित था। इस स्थल की खोज 1953 ईस्वी में अमलानंद घोष द्वारा की गई थी। यहां से अग्निकुंड, बेलनाकार मोहरे, अलंकृत फर्श, तांबे के बैल की मूर्ति, लकड़ी की नाली, नक्काशीदार ईंटे, मास्तिष्क शोथ की बीमारी वाला कपाल, हल से जूते खेत के साक्ष्य तथा भूकंप के प्राचीनतम प्रमाण मिले हैं।

हड़प्पा सभ्यता के लोगों का जीवन यापन-

(i)   कृषि करना
(ii)  पशुपालन करना
(iii) व्यापार करना
(iv) शिकार करना
हड़प्पा सभ्यता के स्थलों में रहने वाले लोग कृषि करते थे तथा गेहूं जौ, दाल, सफेद चना, तिल, बाजरे, चावल इत्यादि उगाते थे ।हड़प्पाई लोग गाय, बैल,भैंस, बकरी, भेड़ और सूअर पालते थे। इन्हें कूबड़ वाला साँड़ अत्यंत प्रिय था। कुत्ते प्रारम्भ से ही पालतू जानवरों में थे। बिल्ली भी पाली जाती थी। कुत्ता और बिल्ली दोनों के ही पैरों के निशान मिले हैं।

हड़प्पा सभ्यता की नगर योजना –

हड़प्पा संस्कृति की सर्वप्रमुख विशेषता इसका नगर योजना है। हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो की खुदाई में पूर्व तथा पश्चिम में दो टीले मिलते हैं घरों का निर्माण एक सीध में सड़कों के किनारे व्यवस्थित रूप में किया जाता था। दरवाजे गलियों या सहायक सड़कों की ओर खुलते थे। भवन दो मंजिले भी थे। घरों में कई कमरे, रसोईघर, स्नानागार तथा बीच में आँगन की व्यवस्था थी।

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हड़प्पा की जल निकासी व्यवस्था-

हड़प्पा सभ्यता की अनूठी विशेषताओं में जल निकास प्रणाली भी थी । हड़प्पा शहरों में नियोजन के साथ जल निकासी की व्यवस्था की गई थी । सड़कों और गलियों को लगभग ग्रीड पद्धति में बनाया गया था । यह एक दूसरे को समकोण पर काटती थी । हपड़प्पाई भवनों को देखकर ऐसा पता लगा है कि पहले यहां नालियों के साथ गलियां बनाई गई उसके बाद गलियों के अगल-बगल मकान बनाए गए । प्रत्येक घर का गंदा पानी इन नालियों के जरिए बाहर चला जाता था । यह नालियां बाहर जाकर बड़े नालों से मिल जाती थी जिससे सारा पानी नगर के बाहर चला जाता था।

Class 12 History Chapter 1 ईंटे, मनके तथा अस्थियाँ 2023-24

हड़प्पा में गृह स्थापत्य कला –

(1) मोहनजोदड़ो के निचले शहर में आवासीय भवन हैं । यहां के आवास में एक आंगन और उसके चारों और कमरे बने थे। आंगन खाना बनाने और कताई करने के काम आता था। यहां एकान्तता ( प्राइवेसी ) का ध्यान रखा जाता था । भूमि तल ( ग्राउंड लेवल ) पर बनी दीवारों में खिड़कियां नहीं होती थीं ।

(2) मुख्य द्वार से कोई घर के अंदर या आंगन को नहीं देख सकता था । हर घर में अपना एक स्नानघर होता था जिसमें ईटों का फर्श होता था । स्नानघर का पानी नाली के जरिए सड़क वाली नाली पर बहा दिया जाता था । कुछ घरों में छत पर जाने के लिए सीढ़ियां बनाई जाती थी । कई घरों में कुएं भी मिले हैं ।

(3) कुएँ एक ऐसे कमरे में बनाए जाते थे जिससे बाहर से आने वाले लोग भी पानी पी सके । ऐसा अनुमान लगाया गया है कि मोहनजोदड़ो में कुएँ की संख्या लगभग 700 थी ।

शिल्प और तकनीकी का ज्ञान हड़प्पा सभ्यता में-

हड़प्पा सभ्यता के लोग काँस्य के निर्माण और प्रयोग से भली-भाँति परिचित थे। सामान्यतः काँसा, ताँबे में टिन को मिलाकर धातु शिल्पियों द्वारा बनाया जाता था। हड़प्पा स्थलों में जो काँसे के औजार व हथियार मिले हैं, उनमें टिन की मात्रा अत्यन्त कम है। ताँबा, राजस्थान की खेतड़ी के ताम्र-खानों से मंगाया जाता था। टिन अफगानिस्तान से मँगाया जाता था। मोहनजोदड़ो से बुने हुए सूती कपड़े का एक टुकड़ा मिला है। और कई वस्तुओं पर कपड़े की छाप देखने को मिला है। कताई के लिए तकलियों का इस्तेमाल भी होता था। स्वर्णकार चाँदी, सोना तथा रत्नों के आभूषण बनाते थे। सोना, चाँदी संभवतः अफगानिस्तान से तथा रत्न भारत से आते थे। कुम्हार के चाक का ज्यादा प्रचलन था तथा हड़प्पा लोगों के मृद्भांडों की अपनी प्रमुख विशेषताएँ थीं। ये मृदभांडों को चिकना और चमकीला बनाते थे।

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Class 12 History Notes (Hindi)

हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख स्थल- 

1लोथलगुजरात
2कालीबंगाराजस्थान
3नागेश्वर गुजरात
4लोधावीरागुजरात
5चहून्दरोपाकिस्तान
6बालकोटापाकिस्तान
7राखीगढहरियाणा
8सुरकोटड़ागुजरात
9रोपड़पंजाब
10आलमगीरपुरउत्तर प्रदेश
11मांडाकश्मीर

 

हड़प्पा सभ्यता में मनको का निर्माण-

मनको का निर्माण विभिन्न प्रकार के पदार्थों से किया जाता था ।

कार्नेलियन – सुंदर लाल रंग का
जैस्पर , स्फटिक ,क्वार्टज ,सेलखड़ी
धातु – सोना , तांबा , कांसा
शंख , फयांस , पकी मिट्टी

History Class 12th Chapter’s Notes

(i)  कुछ मनके दो या दो से अधिक पत्थरों को आपस में जोड़कर बनाए जाते थे । यह मनके चक्राकार , बेलनाकार , गोलाकार , ढोलाकार , खंडित आदि आकार के हो सकते हैं । इन पर चित्रकारी करके इन्हें सजाया जाता था ।

(ii)   मनके बनाने में विभिन्न पदार्थों का इस्तेमाल होता था ।

(iii)  इन्हीं के अनुसार इनको बनाने की तकनीक में भी बदलाव किया जाता था। सेलखड़ी एक मुलायम पत्थर था जो आसानी से उपयोग में लाया जा सकता था । कुछ मनके ऐसे भी मिले हैं जिन्हें सेलखड़ी के चूर्ण को सांचे में ढाल कर बनाया गया था । इससे विभिन्न आकार के मनके बनाए जा सकते थे ।

(iv)  कार्नेलियन का लाल रंग, पीले रंग के कच्चे माल को आग में पकाने से प्राप्त होता था । मनको को बनाने में घिसाई, पॉलिश और इस में छेद करने की प्रक्रिया से यह पूरे होते थे । लोथल , चहुंदडो , धौलावीरा से छेद करने के उपकरण मिले हैद्य

(v)  नागेश्वर और बालाकोट दोनों बस्तियां समुद्र तट के समीप है । यहां शंख की वस्तु , चूड़ियां , करछिया तथा पच्चीकारी बनाई जाती थीं, यहां से निर्मित वस्तुओं को दूसरी बस्तियों तक ले जाया जाता था ।

हड़प्पा सभ्यता का पतन –

ऐसा माना जाता है कि हड़प्पा सभ्यता का अंत किसी प्राकृतिक आपदा के कारण हुआ जैसे कि भूकंप सिंधु नदी का रास्ता बदलना जलवायु परिवर्तन वनों की कटाई आर्यों का आक्रमण हड़प्पा सभ्यता को सिन्धु घाटी सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि उस सभ्यता के अधिकांश स्थलों का विकास सिन्धु नदी की घाटी में हुई थीं। पुरातत्वविदों द्वारा हड़प्पा सभ्यता का समय 2600 ई0 पू0 से 1900 ई0 पू0 के मध्य निर्धारित किया गया है। रेडियो कार्बन-14 ( सी-14 ) जैसी नवीनतम विश्लेषण पद्धति द्वारा हड़प्पा सभ्यता का समय 2500 ई0 पू0 से 1750 ई0 पू0 माना गया है, जो सबसे अधिक मान्य है।

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हड़प्पा सभ्यता में धार्मिक मान्यता-

  • आभूषण से लदी हुई नारी की मूर्ति मिली हैए इन्हें मात्रदेवी की संज्ञा दी गई है
  • विशाल स्नानागार तथा कालीबंगन और लोथल से मिली
  • वेदियाँ तथा संरचनाओं को अनुष्ठानिक महत्व दिया गया
  • कुछ मुहरों में अनुष्ठान के दृश्य बने हैं
  • कुछ मोहरों पर पेड़ पौधे उत्कीर्ण थे
  • ऐसा माना जाता है कि हड़प्पा के लोग प्रकृति की पूजा करते थे
  • कुछ मुहर में एक व्यक्ति योगी की मुद्रा में बैठा दिखाया गया है
  • कभी.कभी इन्हें जानवरों से घिरा दर्शाया गया
  • संभवत यह शिव अर्थात हिंदू धर्म के प्रमुख देवता रहे होंगे
  • पत्थर के शंकु आकार वस्तुओं को शिवलिंग के रूप में वर्गीकृत किया गया है

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